📍 स्थान: मैनपुरी, होली पब्लिक स्कूल | 🗓️ तिथि: बुधवार, 30 अप्रैल 2025
रिपोर्ट: साहित्य टुडे संवाददाता
मैनपुरी की साहित्यिक धरती ने एक बार फिर अपनी वैचारिक गहराई और भावनात्मक ऊष्मा से भरपूर काव्य गोष्ठी का साक्षात्कार किया। ‘होली पब्लिक स्कूल’ के प्रांगण में आयोजित इस गोष्ठी ने न केवल कविता को मंच दिया, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक विघटन पर विमर्श का माध्यम भी बनाया। कार्यक्रम का आयोजन “पांचवां चरण: साहित्यिक संकल्प यात्रा” के अंतर्गत किया गया, जिसमें विविध रंगों की कविताओं ने देश, समाज और संस्कृति की अंतर्ध्वनियों को स्वर दिया।
✍️ कविता के माध्यम से मुखर हुई पीड़ा और प्रतिरोध
मुख्य वक्ता कवि रूपचंद्र शास्त्री ‘मयंक’ ने जब पढ़ा —
“काफिरों का मुल्क बसा हद पार है, हाथ खून से रंगे, जग शर्मसार है…”
तो श्रोता क्षण भर के लिए निःशब्द हो गए। यह कविता केवल शब्द नहीं थी, बल्कि वह आंतरिक आक्रोश था जो आज के सामाजिक परिप्रेक्ष्य में कहीं दबा हुआ है।
शास्त्री जी ने कविता को केवल सौंदर्य नहीं, बल्कि सत्य के उद्घाटन का औज़ार माना। उनकी पंक्तियाँ उन असंख्य मौन आवाज़ों की अनुगूंज थीं जो अन्याय और असहिष्णुता के विरुद्ध एक सांस्कृतिक प्रतिवाद की तरह गूंज रही थीं।
🌸 श्रद्धांजलि और साहित्य: एक सुंदर संगम
गोष्ठी की शुरुआत हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में शहीदों को मौन श्रद्धांजलि के साथ हुई, जिसने पूरे आयोजन को एक भावनात्मक आधार प्रदान किया। साहित्यकारों ने इसे ‘संवेदना का साझा क्षण’ कहा, जहां शब्द मौन से भी अधिक मुखर हो गए।
👥 जिन्होंने मंच को गरिमा दी:
इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. एसी तिवारी, डॉ. रामेश्वर शर्मा, प्रो. अनुराग दुबे, डॉ. विजय यादव, प्रेमेंद्र अवस्थी, शिवचरण चौरसिया, रामकुमार पांडेय, शशांक तिवारी, राजकिशोर राज समेत कई रचनाकार उपस्थित रहे।
विशेष अतिथि सत्यस्वरूप मिश्र, वीरेन्द्र सिंह, कृष्ण मोहन शास्त्री आदि ने अपने विचारों से आयोजन को गरिमा प्रदान की।
🎙️ उल्लेखनीय पंक्तियाँ जो गूंजती रहीं:
“कहाँ ग़र-ग़र श्याम करें, श्याम रंग छा गया।”
— कवि रामाश्रय मिश्र ‘नेपाली’
✨ “साहित्य टुडे” की विशेष टिप्पणी
यह आयोजन महज़ एक काव्यपाठ नहीं था, यह उस संघर्षशील आत्मा का उत्सव था जो आज भी कलम के माध्यम से समाज में चेतना का संचार कर रही है। साहित्य की भूमिका केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं, वह विचारों का ब्रह्मास्त्र है — और मैनपुरी की यह शाम इसका साक्ष्य रही।
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