पुनरागमन: 22 वर्षों के अंतराल के बाद रंगमंच पर वापसी
भारतीय रंगमंच के प्रतिष्ठित अभिनेता आशुतोष राणा ने 22 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद नाटक ‘हमारे राम’ में रावण की भूमिका निभाकर रंगमंच पर पुनः पदार्पण किया है। इस नाटक का निर्देशन गौरव भारद्वाज ने किया है, जिसमें राहुल बुचर राम की भूमिका में और हरलीन कौर रेखी सीता की भूमिका में हैं। यह नाटक दिल्ली, मुंबई और उज्जैन सहित देश के विभिन्न शहरों में 160 से अधिक प्रस्तुतियाँ कर चुका है।
रावण का चयन: एक गहन आत्मविश्लेषण
रावण की भूमिका के चयन के पीछे आशुतोष राणा की गहरी आत्मिक प्रेरणा है। उन्होंने बताया कि बचपन में रामलीला में भाग लेने के दौरान रावण का किरदार उन्हें अत्यंत आकर्षित करता था, परंतु बच्चों को यह भूमिका नहीं दी जाती थी। अब, ‘हमारे राम’ के माध्यम से उन्हें यह अवसर प्राप्त हुआ है। उन्होंने कहा, “रावण केवल एक नकारात्मक पात्र नहीं था; वह एक महान विद्वान, शिवभक्त और त्रिलोक विजेता था। उसके पतन का कारण उसका अहंकार था, जिसे हम इस नाटक में दर्शाने का प्रयास करते हैं।”
नाटक की विशिष्टता: रावण का नया दृष्टिकोण
‘हमारे राम’ नाटक में रावण को पारंपरिक नकारात्मक दृष्टिकोण से हटकर प्रस्तुत किया गया है। राणा ने कहा, “रावण को केवल नकारात्मक रूप में देखना उसकी महानता को कम आंकने जैसा है। वह न केवल एक शक्तिशाली राजा था, बल्कि एक ज्ञानी और विद्वान भी था, जिसकी इच्छा आत्मज्ञान और मोक्ष से भी परे मुक्त होने की थी।”
रंगमंच का महत्व: अभिनय की आधारशिला
राणा रंगमंच को अभिनय की आधारशिला मानते हैं। उन्होंने कहा, “रंगमंच एक प्रशिक्षण विद्यालय के समान है, जबकि फिल्में और वेब शो प्रदर्शन के मंच हैं। थिएटर में कलाकार न केवल जुड़ते हैं, बल्कि संवाद भी स्थापित करते हैं, जो उन्हें एक संपूर्ण कलाकार बनाता है।”
निष्कर्ष: ‘हमारे राम’ में रावण का पुनर्परिभाषण
‘हमारे राम’ नाटक के माध्यम से आशुतोष राणा ने रावण के चरित्र को एक नई दृष्टि से प्रस्तुत किया है, जो दर्शकों को आत्मनिरीक्षण और आत्मविकास की प्रेरणा देता है। यह नाटक न केवल रामायण की कथा को पुनः जीवंत करता है, बल्कि उसमें निहित गूढ़ संदेशों को भी उजागर करता है।
“Sahitya Today” की ओर से विचार:
‘हमारे राम’ नाटक में आशुतोष राणा की रावण के रूप में प्रस्तुति भारतीय रंगमंच में एक महत्वपूर्ण योगदान है। यह नाटक दर्शकों को न केवल मनोरंजन प्रदान करता है, बल्कि उन्हें आत्मचिंतन और आत्मविकास की दिशा में प्रेरित भी करता है। राणा की यह भूमिका भारतीय रंगमंच के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित होगी।