लेखक : कैप्टन अभय कुमार ‘आनंद’
प्रकाशक : कपिलश प्रकाशन, गोला गोकर्णनाथ, खीरी, उत्तर प्रदेश
प्रकाशन वर्ष : 2024
पृष्ठ संख्या : 186 सवैया छन्द
ISBN: 978-81-971158-4-4

भूमिका : भक्तिरस की सवैया-गंगा
“छन्द महान विधान धरा पर, जो मन-मानव ईश मिलाए…” — इन पंक्तियों के साथ आरंभ होता है कैप्टन अभय कुमार आनंद की साहित्यिक भक्ति साधना का दिव्य यज्ञ। “सुन्दरकाण्ड– सवैया आनन्दामृत” एक ऐसा काव्य-संग्रह है जिसमें भक्तिरस, छन्द-शास्त्र और मानस-भावना का त्रिवेणी संगम परिलक्षित होता है।
परिचय : एक सपूत, एक कवि, एक साधक
कैप्टन अभय कुमार आनंद का जीवन-संघर्ष, मातृवियोग से लेकर सैन्य जीवन की तपस्या तक, एक वीर कवि की आत्मकथा है। उनकी काव्यकला में वह भक्ति की अंतर्धारा है जो तुलसी, मीरा और कबीर की परंपरा को आधुनिक युग में पुनर्स्थापित करती है। इस ग्रंथ में वह ‘हनुमानजी के रामकाज’ को सवैया छन्दों में बाँधते हैं, जो स्वयं में एक विलक्षण उपक्रम है।
मुख्य खण्ड – सवैया में ‘सुन्दरकाण्ड’ का पुनर्गान
छन्दों की योजना और भक्ति की गहराई
इस ग्रंथ में कुल 186 सवैयों में से 180 सवैयों में सुन्दरकाण्ड की समस्त कथा, मत्तगयंद सवैया छन्द में रची गई है। शेष छः सवैये आत्मकथ्य और समर्पण में प्रयुक्त हुए हैं। यह संपूर्ण रचना मत्तगयंद सवैया के कठोर नियमों (211×7+22 वर्ण संरचना) में बंधी हुई है, जिससे लेखक की छन्द-निपुणता प्रमाणित होती है।
शब्द-संयोजन और शैली
भाषा का प्रवाह संस्कृतनिष्ठ हिंदी में है, जिसमें अवधी, ब्रज और रामचरितमानस की उपभाषिक छवियाँ स्पष्ट दिखती हैं। उदाहरणस्वरूप:
“माूँ ससय दशशन युक्ति विभीषण ने कपि को अतिशीघ्र सुनाई ।
ले मस का तन जा पहूँ चे कपि, पास अशोक तले ससय माई ॥”
यह शैली न केवल काव्य-रस को पुष्ट करती है, बल्कि पाठक को मानस की मूल गहराइयों में उतरने को बाध्य करती है।
विषयगत विविधता : भाव और प्रसंग का समुचित संयोजन
1. आत्मकथ्य – साधक का उद्घोष
कृति का आरंभ आत्मकथ्य से होता है, जहाँ कवि अपनी प्रेरणा, उद्देश्य और भक्ति की नींव को प्रकट करता है। यह आत्मकथ्य एक गुरु-वंदना है, एक माँ सरस्वती से वरदान की याचना।
2. लंका-प्रस्थान से आरंभ – पवनपुत्र की वीरगाथा
कविता का आरंभ लंका प्रस्थान से होता है, जहाँ हनुमानजी का भावविभोर चित्रांकन है। सरुसा से मुठभेड़, लंकिनी पर प्रहार, अशोक वाटिका का प्रवेश, सीताजी से संवाद — सब कुछ एक-एक सवैये में भावनात्मक सघनता और चित्रात्मकता के साथ पिरोया गया है।
3. संवाद कौशल – सीता, हनुमान, विभीषण
सीता-हनुमान संवाद में करूणा, संकोच और मातृत्व का भाव स्पष्ट है। वहीं विभीषण-हनुमान संवाद में धर्म और नीति की चेतना है।
4. लंकादहन और वापसी
लंका दहन और राम को चूड़ामणि सौंपने की दृश्यावली अत्यंत सजीव है। कवि ने न केवल घटनाओं को वर्णित किया है, बल्कि उसमें भावों का सजीव संचार किया है।
साहित्यिक एवं भाषिक विश्लेषण
छन्द-साधना का शास्त्रीय अनुशासन
पुस्तक में प्रयुक्त “मत्तगयंद सवैया” छन्द की प्रत्येक रचना छन्दशास्त्र की कसौटी पर खरी उतरती है। कवि ने न केवल लय और गति का ध्यान रखा है, अपितु छन्द की “गम्भीरता” और “गरिमा” को भी अक्षुण्ण रखा है।
भाषा की सात्विकता
भाषा भावों की वाहक है — यह बात इस पुस्तक में अक्षरशः चरितार्थ होती है। कठिन शब्दावली के प्रयोग के बावजूद कविता की सम्प्रेषणीयता में कोई बाधा नहीं आती।
उदाहरण – भाव और अभिव्यक्ति का संगम
“जो तन व्याकुल हो कतप कारण, वंश तनशाचर स्वगश पधारे ।
पुण्य तकया कुछ जीिन में तब, जो हनु को मम नैन तनहारे ॥”
यहाँ कवि की दृष्टि केवल पौराणिक नहीं, बल्कि दार्शनिक भी है।
समीक्षकों की राय : सामाजिक-साहित्यिक प्रतिष्ठा
विविध समीक्षकों — जैसे डॉ. अवनी हरि, कविता काव्या ‘सखी’, रंजना सिंह — ने इस कृति को “समकालीन भक्ति काव्य” का अभिनव प्रयास कहा है। सभी ने सर्वसम्मति से इसकी “कालजयीता” को रेखांकित किया है।
निष्कर्ष : ‘आनन्दामृत’ का महाप्रसाद
“सुन्दरकाण्ड– सवैया आनन्दामृत” केवल एक काव्य नहीं, अपितु एक आध्यात्मिक अनुभव है। यह ग्रंथ साहित्यिक श्रद्धालुओं, शोधार्थियों, पाठकों और भक्तों — सभी के लिए समान रूप से लाभकारी है।
यह कृति एक बार फिर सिद्ध करती है कि छन्द-शास्त्र, भक्ति और साहित्य का संगम जब किसी सच्चे साधक के हृदय में होता है, तो वहाँ केवल कविता नहीं, “आनन्दामृत” बहता है।
“Sahitya Today” की ओर से टिप्पणी
कैप्टन अभय कुमार आनंद की यह रचना न केवल छन्द-कला का पुनर्जागरण है, अपितु हिंदी साहित्य में भक्ति-साहित्य के पुनर्प्रवेश की ध्वनि भी है। “Sahitya Today” इस काव्य-यात्रा को प्रणाम करते हुए यह कामना करता है कि यह कृपा-रस सुधा और भी दूर-दूर तक पाठकों को सिंचित करती रहे।
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