अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2025 की अंतिम सूची में पहली बार किसी कन्नड़ पुस्तक का चयन — भानु मुश्ताक की ‘हार्ट लैम्प’ ने रचा इतिहास

नई दिल्ली। कन्नड़ साहित्य के इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण आया है। भानु मुश्ताक की कहानियों का संग्रह Heart Lamp (हार्ट लैम्प), जिसे दीपा भास्ती ने अंग्रेज़ी में अनूदित किया है, अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2025 की अंतिम सूची (शॉर्टलिस्ट) में शामिल किया गया है। यह पहला अवसर है जब किसी कन्नड़ पुस्तक को इस वैश्विक मंच पर यह गौरव प्राप्त हुआ है।

पाँच दशकों से लिखी गई इन कहानियों में मुस्लिम महिलाओं के जीवन की विविधतापूर्ण, संवेदनशील और सघन झलक मिलती है। इनकी शैली में जहाँ एक ओर काव्यात्मक प्रतिरोध है, वहीं दूसरी ओर भाषा का अभिनव प्रयोग और मौन राजनीतिक चेतना भी विद्यमान है। लेखिका और अनुवादिका के लिए यह यात्रा न केवल साहित्यिक मान्यता की है, बल्कि भाषा, पहचान और अस्तित्व के सवालों पर भी एक सशक्त वक्तव्य है।

“इतिहास रचने जैसा है यह क्षण” – भानु मुश्ताक

1980 के दशक से लेखन में सक्रिय भानु मुश्ताक के लिए यह क्षण गर्व और दबाव, दोनों का संगम है। वे कहती हैं, “मैं बहुत प्रसन्न हूँ, लेकिन अचानक मिली इस प्रसिद्धि से अभिभूत भी हूँ। इस खुशी को पूरी तरह से जी पाना कठिन हो रहा है।”

फिर भी वे इस उपलब्धि के महत्व को भलीभाँति समझती हैं — यह न केवल उनका व्यक्तिगत मील का पत्थर है, बल्कि कन्नड़ साहित्य के लिए भी एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। “यह वास्तव में इतिहास है,” वे कहती हैं। “कन्नड़ साहित्य हमेशा से समृद्ध रहा है, लेकिन उसे कभी वैश्विक मंच पर वह पहचान नहीं मिल पाई। यह अवसर अनेक दरवाज़े खोलता है।”

बहुभाषिकता और स्त्री जीवन की सहज कहानियाँ

भानु की कहानियाँ आम मुस्लिम महिलाओं के दैनिक जीवन में गहराई से रची-बसी हैं, जहाँ आस्था, लैंगिकता और प्रतिरोध की थीम्स स्वाभाविक रूप से उभरती हैं। उनकी भाषा शैली सहज और बोलचाल की है, जिसमें कन्नड़, उर्दू, अरबी और दक्खनी का मिश्रण मिलता है — जो अनुवाद के स्तर पर एक चुनौती भी थी, जिसे दीपा ने संजीदगी से निभाया।

अनुवाद: एक सहज लेकिन संवेदनशील प्रक्रिया

दीपा भास्ती बताती हैं, “मेरा अनुवाद का तरीका सैद्धांतिक नहीं बल्कि सहज है। मैंने भानु की 50 से अधिक कहानियाँ पढ़ीं और उनमें से 12 को चुना जो विषयवस्तु में विविध हों — हास्य, सूक्ष्मता और सार्वभौमिकता लिए हुए।”

वे स्पष्ट करती हैं कि उन्होंने ऐसे शब्दों को विशेष रूप से ‘इटैलिक’ करके ‘विदेशी’ दिखाने से बचने की कोशिश की है। “हम ‘रोट्टी’ या ‘दोसे’ जैसे शब्दों को अंग्रेज़ी में भी उसी तरह इस्तेमाल करते हैं, जैसे रोज़मर्रा की भाषा में करते हैं। इन्हें ‘अलग’ बताकर पश्चिमी पाठकों के लिए साहित्य को ‘विलक्षण’ बनाना मुझे उचित नहीं लगता।”

भाषिक अस्मिता और स्त्री दृष्टि

भानु अपने लेखन में कई भाषाओं के प्रयोग को एक प्राकृतिक प्रक्रिया मानती हैं। वे कहती हैं, “हमारी ज़िंदगी में भाषाएँ आपस में घुलमिल जाती हैं। वही भावना मेरी कहानियों में भी है। यह उन्हें ज़्यादा आत्मीय और संबंधित बनाती है।”

धार्मिक आस्था और स्त्रियों के जीवन के टकराव को लेकर वे कहती हैं, “आस्था एक सुकून भी दे सकती है, लेकिन जब उसका दुरुपयोग होता है, तो वही आस्था दमनकारी बन जाती है। मेरी कहानियाँ इसी द्वैत को पकड़ने की कोशिश करती हैं।”

दीपा को भानु की लेखन शैली में जो सबसे आकर्षक लगा, वह था उनका ‘दिखाना, न कि कहना’ वाला दृष्टिकोण। वे कहती हैं, “उनका हास्य सूक्ष्म, चुटीला और चतुर है। अगर आप ध्यान न दें तो वह छूट सकता है। यह दुर्लभ और ताज़गीभरा है।”

विश्वास और सहयोग की साझेदारी

इस अनुवाद यात्रा में लेखिका और अनुवादिका के बीच गहरा विश्वास भी रहा। भानु बताती हैं, “दीपा ने कहानियों के चयन और अनुवाद की पूरी स्वतंत्रता ली। वह अपने प्रश्न लिखकर लातीं और हम मिलकर संदर्भ और अर्थ पर चर्चा करते, लेकिन मैंने कभी उसके निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं किया।”

दीपा के लिए यह सहयोग विशेष रूप से महत्वपूर्ण था, क्योंकि वे उस सांस्कृतिक समुदाय से नहीं आतीं जिसके बारे में लेखन किया गया है। “दक्षिण भारत तो पहले ही भाषिक दृष्टि से बहुभाषिक है, लेकिन इस परियोजना में मुझे इस्लामी जीवन की सांस्कृतिक बारीकियों को समझने में अतिरिक्त सावधानी रखनी पड़ी,” वे कहती हैं।


‘हार्ट लैम्प’ का यह चयन न केवल भानु मुश्ताक के लेखन और दीपा भास्ती के अनुवाद कौशल का प्रमाण है, बल्कि यह भारतीय भाषाओं के वैश्विक मंच पर उभरते स्वर की भी पुष्टि है। यह क्षण कन्नड़ साहित्य के लिए एक उज्ज्वल दीपक की तरह है — वह दीपक जो सीमाओं के पार भी अपनी रोशनी बिखेर रहा है।

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